भविष्यवाणियों के अर्थ

भविष्यवाणियों के अर्थ

द्वैतवाद

दक्षिणी पश्चिमी एशिया के यहूदी तथा अरबी धर्म के अनुयाइयों का विश्वास है कि ईश्वर तथा उसकी रचना मनुष्य दोनों का अलग-अलग अस्तित्व है यह द्वैत वाद कहलाता है क्योंकि यह ईश्वर तथा मनुष्य अलग-अलग हैं, यह सच है, ऐसा मानते हैं। इस धर्म के मानने वाले इस विचार को कि मनुष्य, ईश्वर बन सकता है, मान ही नहीं सकते। वे विश्वास करते हैं कि मनुष्य का ईश्वर से मिलना या किसी भी तरह से वास्तविक रूप में आमने सामने उसे देख पाना असम्भव है। इसके विपरीत, वैदिक (हिन्दू)  धर्म विश्वास करता है कि ईश्वर और मनुष्य दोनों का अलग-अलग अस्तित्व नहीं है हिन्दू दर्शन के अनुसार, पूर्ण विकास होने पर मनुष्य देवत्व प्राप्त कर सकता है। मनुष्य इस पूर्ण विकास को तभी प्राप्त कर सकता है जब वह भौतिक तथा मानसिक चेतना से ऊपर उठकर अन्तिम तीन आध्यात्मिक चेतनाओं की अवस्थाओं से, गुरू सियाग जैसे दिव्य गुरू के आशीर्वाद के साथ, गुजरते हुए प्रगति करता है। यह अद्वैतवाद है क्योंकि यह ईश्वर तथा मनुष्य में भेद नहीं करता है। हिन्दू दर्शन केवल ‘सोऽ हम‘ (मैं ही ईश्वर ह) के विचार को स्पष्ट ही नहीं करता है बल्कि मनुष्य के लिये, विकास की उच्चतम अवस्था को प्राप्त करने हेतु क्रियात्मक विधि भी प्रतिपादित करता है।

भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है-

ईश्वरः सर्वभूतानां हृदेशे अर्जुन तिष्ठति।

भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।।  (भ.गी.१८ः६१)

“हे अर्जुन शरीर रूपी यंत्र में आरूढ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी माया से भ्रमाता हुआ सब भूत प्राणियों के हृदय में स्थित है”। (भ.गी. १८:६१)

वर्तमान ईसाई द्वैतवाद के विश्वास के विरूद्ध बाइबल, हिन्दू विचारधारा के अद्वैतवाद के प्रति प्रतिध्वनित होती है, जब वह कहती है” और मूरतों के साथ परमेश्वर के मन्दिर का क्या सम्बन्ध ?

क्योंकि हम तो जीवते परमेश्वर के मन्दिर हैं, जैसा परमेश्वर ने कहा है कि मैं उसमें वसूँगा, और उसमें चला फिरा करूँगा, और मैं उनका परमेश्वर हूँगा, और वे मेरे लोग”। (२ कुरिन्थियो ६:१६)

पुनः जन्म लेना होगा

जब जीसस ३० वर्ष के थे, लम्बे समय तक उनकी अनुपस्थिति के बारे में बाइबल मौन है, लेकिन जब काफी समय के अज्ञातवास के बाद जीसस पुनः प्रकट हुए तो उन्होंने परमेश्वर के राज्य को देखने के लिए मनुष्य को पुनः जन्म लेने की आवश्यकता के बारे में उपदेश देना आरम्भ किया।

बाइबल कहती है “यीशु ने स्पष्ट शब्दों में कहा, यदि कोई नये सिरे से न जन्में तो परमेश्वर का राज्य नहीं देख सकता”। (जॉहन ३:३)

“निकोडियस ने उनसे कहा, क्या एक वृद्ध व्यक्ति पुनः जन्म ले सकता है! क्या वह अपनी माँ की कोख में दुबारा प्रवेश कर सकता है? और फिर जन्म ले”। (जॉहन ३:४)

“यीशु ने स्पष्ट शब्दों में कहा यदि कोई मनुष्य पानी और आत्मा से उत्पन्न न हो तो वह परमेश्वर का राज्य नहीं देख सकता”। (जॉहन ३:५)

“कि मांस से मांस उत्पन्न होता है और जो आत्म तत्व से जन्म लेता है आत्मा है”।(जॉहन ३:६)

“जो मैंने उनसे कहा उससे अचम्भित न होओ, तुम्हें पुनः जन्म लेना होगा”।(जॉहन ३:७)

“हवा चलती है आवाज के साथ तुम उसकी आवाज को सुनते हो, लेकिन नहीं बता सकते कि वह कहाँ से आती है और कहाँ जाती है, इसी प्रकार प्रत्येक है जो आत्मा से जन्म लेता है”। (जॉहन ३:८)

यीशु ने आदमी के बारे में कहा है कि “दुबारा जन्म लेना होगा” इसका क्या मतलब है? बाइबल के व्याख्याकारों में इस बारे में अभी भी भारी भ्रम की स्थिति है।

पुनः जन्म अर्थात द्विज की अवधारणा की बडी सावधानीपूर्वक पवित्र घोषणा हिन्दू धर्म में की गई है जो यीशु से कई हजार वर्ष पहले की है। हिन्दू दर्शन में द्विज (दूसरा जन्म) होने की अवधारणा है, गुरू सियाग स्पष्ट करते हैं, हिन्दू दर्शन के अनुसार, पृथ्वी पर मनुष्य अपने जीवन में दो बार जन्म लेता है, पहली बार अपने भौतिक माता-पिता से, और दूसरी बार तब जब गुरू द्वारा शिष्य को आध्यात्म के मार्ग पर योग द्वारा चलने के लिये दीक्षित किया जाता है। शिष्य के रूप में एक साधक की दीक्षा आध्यात्मिक विकास के मार्ग पर चलने का आरम्भ है जो प्रत्यक्षानुभूति तथा आत्मसाक्षात्कार तक पहुँचाता है। अतः यह दूसरा जन्म, गुरू की दयालुतापूर्ण देखरेख के साथ जुडा हुआ है।

पश्चिम में ईसाई धर्म के अनुयायी पुनः जन्म का सही मतलब तब जान पायेंगे  जब वे निकट भविष्य में गुरू सियाग से सिद्धयोग की शक्तिपात दीक्षा प्राप्त करेंगे।

लम्बे अन्तराल के बीच जीसस कहाँ थे

गुरू सियाग कहते हैं कि पश्चिम में ईसाई धर्म के अनुयायी जब सिद्धयोग का ध्यान करना आरम्भ करेंगे तो वे जान जायेंगे कि जीसस की अपने आसपास के वातावरण से लम्बी अनुपस्थिति के पीछे सच्चाई क्या है। इन ध्यान सत्रों के दौरान जीसस के अनुयायी विजन्स (दृश्य) देखेंगे जिनसे यह सच्चाई प्रकट होगी कि जीसस कहाँ थे और किसमें व्यस्त थे। इस प्रकार बाइबल स्पष्ट भविष्यवाणी करती है। “अरे देखो, तुम्हारा घर सुनसान हो गया है”, (मैथ्यू २३:३८) “क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ, वे मुझे अबसे नहीं देख सकेंगे, जब तक कि वह यह नहीं कहेंगे, जो ईश्वर के नाम पर आ रहा है वह उसका (ईश्वर का) आशीर्वाद पा चुका है”। (मैथ्यू २३:२९)

दिव्य आशीर्वाद (आनंद)

बाइबल में आनन्द के विषय में इस प्रकार लिखा है-“यह एक आन्तरिक आनन्द है, जो सभी सच्चे विश्वासियों के हृदय में आता है। यह आनन्द हृदय में बना रहता है, सांसारिक आनन्द के समान यह आता जाता नहीं है। उसका (प्रभु का ) आनन्द पूर्ण है, वह हमारे हृदयों के कटोरों को आनन्द से तब तक भरता है, जब तक उमड न जाय। प्रभु का आनन्द जो हमारे हृदयों में बहता है, हमारे हृदयों से उमडकर दूसरों तक बह सकता है”।

भगवान कृष्ण ने भगवत गीता में इस दिव्य आनन्द की बारीकी से इस प्रकार व्याख्या की है-“बाहर के विष्यों में आसक्तिरहित अन्तःकरण वाला पुरूष अन्तःकरण में जो भगवत ध्यान जनित आनन्द है उसको प्राप्त होता है (और) वह पुरूष सच्चिदानन्दधन परब्रह्म परमात्मारूप योग में एकीभाव से स्थित हुआ अक्षय आनन्द को अनुभव करता है”। (भ.गी. ५:२१)

“इस प्रकार आत्मा को निरन्तर (परमेश्वर के स्वरूप में) लगाता हुआ स्वाधीन मनवाला योगी मेरे में स्थित रूप परमानन्द पराकाष्ठा वाली शान्ति को प्राप्त होता है”। (भ.गी. ६:१५)

“इन्दि्रयों से अतीत, केवल शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि द्वारा, ग्रहण करने योग्य जो अनन्त आनन्द है, उसको जिस अवस्था में अनुभव करता है और जिस अवस्था में स्थित हुआ यह योगी भगवत स्वरूप से नहीं चलायमान होता है”। (भ.गी. ६:२१)

“क्योंकि जिसका मन अच्छी प्रकार शान्त है (और) जो पाप से रहित है (और) जिसका रजोगुण शान्त हो गया है ऐसे इस सच्चिदानन्दधन ब्रह्म के साथ एकीभाव हुए योगी को अति उत्तम आनन्द प्राप्त होता है”। (भ.गी. ६:२७)

“पाप रहित योगी इस प्रकार निरन्तर आत्मा को (परमात्मा में) लगाता हुआ सुखपूर्वक परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति रूप अनन्त आनन्द को अनुभव करता है”।(भ.गी. ६:२८)

विश्व के लोग मसीहा को चेलेंज करेंगे

जीसस ने अपने शिष्यों को सही मसीहा की पहचान के लिये जो चिन्ह बतलाये थे, यद्यपि गुरू सियाग उनमें से प्रत्येक बात का उत्तर देते हैं फिर भी वह अच्छी तरह से जानते हैं कि आज का विश्व भौतिक वृत्तियों के हावी होने के कारण, उन्हें ऐसे ही आसानी से स्वीकार नहीं करेगा, देवत्व का सबूत माँगेगा। बाइबल ने यह भी सोचकर जब यह कहा “क्या वह इस आदमी से दूसरी भाषा में तथा हकलाती हुई बोली में बोलेगा”। (यशायाह २८:११)

“उसने किससे कहा, यह आराम है जिससे वह थकान को दूर कर सके, और यह ताजगी भरा है, फिर भी वह नहीं सुनेगा”। (यशायाह २८:१२)

“अन्धे व्यक्ति को आगे लाओ जो आँखें रखता है तथा बहरे को जो कान रखता है”।(यशायाह ४३:८)

“नियमों में यह लिखा है क्या दूसरी भाषा तथा बोली के लोगों के साथ मैं इन लोगों को बोलूँगा और फिर भी सबके लिये क्या वे मुझे नहीं सुनेंगे, परमेश्वर ने कहा”। (१ कुरिन्थियों १४:२१)

जैसी बाइबल द्वारा भविष्यवाणी की गई थी, गुरू सियाग की अब तक की आध्यात्मिक यात्रा धार्मिक बातों पर विश्वास न करने वाले नास्तिकों के साथ क्लेशों तथा परीक्षाओं से भरी हुई रही है जो निगाह के सामने स्पष्ट सबूतों के बावजूद उनकी दिव्य शक्तिओं के बारे में शक कर रहे हैं। फिर भी वे घबराये हुए नहीं हैं। क्योंकि उन्हें विश्वास है अन्ततः ईश्वर का कार्य किया जायेगा, इससे कोई फर्क नहीं पडता उन्हें कितनी भी कठोर परीक्षाओं से क्यों न गुजरना पडे। वह कहते हैं-

  “मुझे परमात्मा में पूर्ण विश्वास है कि वह मुझे सफलता प्रदान करेंगे”।

     इसलिये उसी आदेश पर जो सर्वोच्च शक्ति ने दिया

“अपना कारण प्रस्तुत करो, परमेश्वर ने कहा, अपने सशक्त कारण सामने लाओ जैकोव के राजा ने कहा”। (यशायाह ४१:२१)

मैने अपना पक्ष दुनिया के आगे रखा है। मैं आशा करता हूँ कि सभी बुद्धिमान एवं सच्चे धार्मिक लोग मेरे कथनों की बारीकी से जांच  करेंगे और विश्व में पूर्ण धार्मिक क्रान्ति लाने में मदद करेंगे, जिससे पृथ्वी पर स्थायी शान्ति स्थापित हो।

गुरु सियाग के बारे में भाविष्यवाणियाँ

विश्व के सभी बडे धर्मों में मानवता के भविष्य की झलक भविष्यवाणियों के द्वारा प्रस्तुत की गई है।

हिन्दू या वैदिक धर्म, जो दक्षिणी पश्चिमी एशिया के तीन धर्मों, यहूदी, ईसाई तथा मुस्लिम के आरम्भ से पहले का है विश्वास करता है कि पृथ्वी पर जीवन के विकास के चार महत्वपूर्णकाल हैं। प्रत्येक काल की एक अवस्था है जिसे युग कहते हैं। जो लाखों वर्षों का होता है। इस प्रकार १-सतयुग (सत्य की अवस्था), २-त्रेता युग (जिसमें मात्र तीन चौथाई सत्य बचता है), ३-द्वापर युग (यहाँ केवल आधा सत्य ही रहता है) तथा ४-कलियुग (जिसमें सारा सत्य नष्ट हो जाता है)। काल या युग जिसमें हम अब रहते हैं कलियुग है जो अंधकार युग भी कहलाता है। कलियुग के अन्त के साथ यह चार युग का चक्र पुनः बिना रूके चलता रहता है। प्रत्येक युग में एक ईश्वरीय सत्ता जो अवतार कहलाती है पृथ्वी पर अवतरित होती है और विकास का रास्ता दिखलाती है। वर्तमान में विश्व कलियुग के अन्तिम चरण से गुजर रहा है। कलियुग झगडे, विरोध, हिंसा तथा विनाश का प्रतिनिधित्व करता है। हिन्दू भविष्यवाणियों के अनुसार कलियुग के अन्त में एक ईश्वरीय सत्ता जिसे कल्की कहते हैं पृथ्वी पर मानव के रूप में अवतरित होगी। कल्की समस्त विश्व के मनुष्यों के व्यवहार में आध्यात्मिक क्रान्ति के द्वारा धनात्मक परिवर्तन लायेंगे जो स्थायी शान्ति का परिचायक होगा।

हिन्दुओं के पवित्र ग्रन्थ भगवत गीता में कहा है (अध्याय ४ श्लोक ७ व ८)

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। ४:७।।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थपनार्थाय संभवामि युगे युगे।। ४:८ ।।

अनुवाद- “हे भारत (अर्जुन) जब-जब धर्म की हानि (और) अधर्म की वृद्धि होती है तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात प्रकट करता हूँ। साधु पुरूषों का उद्धार करने के लिये और दूषित कर्म करने वालों का नाश करने के लिये तथा धर्म की स्थापना करने के लिये युग-युग में प्रकट होता हूँ”।

यहूदियों और ईसाइयों दोनों ने जो बाइबल को मानते हैं, तीसरे तथा अन्तिम पैगम्बर के आगमन के बारे में भविष्यवाणी की है।ओल्ड टेस्टामेन्ट (पुराना वसीयतनामा), बाइबल जिसे यहूदी लोग मानते हैं, में, भविष्यवक्ता मलाकी ने भविष्य में आने वाले पैगम्बर के बारे में भविष्यवाणी की है जिसे वह “एलिय्याह” कहता है। न्यू टेस्टामेन्ट (नवीन वसीयतनामा), जिसमें ईसामसीह के सुसमाचार हैं (इंजील) बाइबल जिसे कैथोलिक्स मानते हैं,में, पैगम्बर के आगमन के बारे में एक भविष्यवाणी, और किसी ने नहीं, स्वयं जीसस ने की है जिसे वह ‘कम्फोर्टर‘ कहता है।

अवतार या पैगम्बर के आने के बारे में तीन विभिन्न धर्मों ने जो भविष्यवाणियाँ की है वह आश्चर्यजनक समानतायें रखती हैं। उन सभी ने २१ वीं शताब्दी में मानवता के विरूद्ध युद्ध, अकाल, भाई के द्वारा भाई की हत्या तथा प्राकृतिक आपदा द्वारा भयंकर ईश्वरीय प्रतिकार की भविष्यवाणी की है। मानवता के लगभग पूर्ण विनाश से, केवल निष्ठावान विश्वासपात्रों की रक्षा करने हेतु, अन्तिम अवतार या पैगम्बर के आने की बात वह कहते हैं।

इन भविष्यवाणियों का तुलनात्मक अध्ययन एक समझदार पाठक तथा मनन करने वाले को बहुधा शीघ्र ही इस निर्णय पर पहुँचा देगा कि हिन्दू, यहूदी तथा ईसाई यह तीनों ही धर्म तीन विभिन्न पैगम्बरों के बारे में नहीं कह रहे हैं बल्कि वास्तव में पृथ्वी पर ईश्वरीय नियम को पुनस्र्थापित करने के लिये एकमात्र वही दिव्य सत्ता अवतरित हुई है। अपने विश्वास के अनुसार मनुष्य ईश्वर को विभिन्न नामों द्वारा पुकार सकता है लेकिन वह वही दैवीय शक्ति रहती है, ठीक उसी प्रकार जैसे सूर्य समान रूप से समस्त विश्व पर चमकता है यद्यपि वह विभिन्न नामों से पुकारा जा सकता है।

इन भविष्यवाणियों में गुरू सियाग की एक झलक दी गई थी, १९८४ में बाइबल के खास भाग के बार-बार देखे गये दृश्यों में उनके स्वयं के भावी रोल के बारे में न्यू टेस्टामेन्ट के ईसा के सुसमाचारों में से कुछ अंश जो उन्हें स्वप्न में दिखाये गये थे पृथ्वी पर ईश्वरीय नियम तथा स्थायी शान्ति स्थापित करने हेतु अन्तिम पैगम्बर या अवतार के लिये जीसस द्वारा बोले गये शब्दों का अनुसरण करते हुए दिखलाये गये थे।

जीसस, जो मोजैज के पश्चात दूसरे पैगम्बर माने जाते हैं उन्होंने स्वयं तीसरे एवं अन्तिम पैगम्बर या अवतार के आगमन की भविष्यवाणी की थी। “परन्तु जब वह सहायक आयेगा जिसे मैं तुम्हारे पास पिता की ओर से भेजूँगा, अर्थात सत्य का आत्मा, जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी ओर से गवाही देगा।” (जॉहन १५:२६)

“और तुम भी गवाह हो क्योंकि तुम आरम्भ से मेरे साथ हो” (जॉहन १५:२७ )

जब जीसस न हमेशा के लिये दूर चले जाने को कहा, उनके शिष्य बहुत ज्यादा उदास हो गये। उन्होंने उनसे दूर न जाने के लिये तर्क किये। इस पर जीसस ने जवाब दिया “तो भी मैं तुमसे सच कहता हूँ कि मेरा जाना तुम्हारे लिये अच्छा है क्योंकि यदि मैं न जाऊँ तो वह सहायक तुम्हारे पास न आयेगा, परन्तु यदि मैं जाऊँगा तो मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूँगा” (जॉहन १६:७)

यह स्पष्ट है कि जीसस केवल सहायक के आने के बारे में ही नह बोल रहे थे बल्कि सहायक के आगमन हेतु दुनियाँ को तैयार कर रहे थे। गुरू सियाग के साथ बाइबल की भविष्यवाणियों की क्या सम्बद्धता है? ध्यानपूर्वक अध्ययन करें। इस बारे में जीसस बाइबल में क्या कहते हैं जब उत्सक शिष्य जब यह जानने के लिये शान्त हो जाते हैं कि जब सहायक आयेगा तो विश्व उसे कैसे पहचानेगा।

चेतावनी-जीसस ने पहले चेतावनी दी कि उस समय बहुत से झूठे धोखेबाज उठ खडे होंगे और ईश्वर द्वारा भेजे गये सहायक होने की घोषणा करेंगे।

“और जब वह जैतून पहाड पर बैठा था तो चेलों ने अलग उसके पास आकर कहा, हमसे कह कि यह बातें कब होंगी? और तेरे आने का और जगत के अन्त का (युग परिवर्तन का) क्या चिन्ह होगा?” (मैथ्यू २४:३)

“और यीशु ने उनको उत्तर दिया, सावधान रहो कोई तुम्हें न भरमाने पाये”। (मैथ्यू २४:४)

“क्योंकि बहुत से ऐसे होंगे जो मेरे नाम से आकर कहेंगे कि मैं मसीहा हूँ और बहुत सों को भरमायेंगे”।

“और बहुत से झूठे भविष्यवक्ता उठ खडे होंगे और बहुतों को भरमायेंगे”, (मैथ्यू २४:११)

“उस समय यदि कोई तुमसे कहे कि देखो मसीहा यहाँ है या वह है तो प्रतीत न करना”।(मैथ्यू २४:२३)

“क्योंकि झूठे मसीहा और झूठे भविष्यवक्ता उठ खडे होंगे, और बडे चिन्ह और अद्भुत काम दिखायेंगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें”, (मैथ्यू २४:२४)

“देखो, मैंने पहले से तुमसे यह सब कुछ कह दिया है”, (मैथ्यू २४:२५)

“इसलिये यदि वे तुमसे कहें, देखो वह जंगल में है, तो बाहर न निकलना, देखो वह कोठरियों में है तो प्रतीत न करना”,

कब- जैसे ही चेले शान्त हुए यह जानने के लिये कि सहायक कब आयेगा, यीशु ने उसके आने के सही समय की भविष्यवाणी करने में यह कहते हुए असमर्थता व्यक्त की “उस दिन और उस घडी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र परन्तु केवल पिता”, फिर भी बाइबल के अनुसार यीशु ने बाद में इंगित किया कि कब सहायक आयेगा।

मृत्यु के बाद ४० दिन तक यीशु की आत्मा मृत्यु लोक में घूमती रही। वह आत्मा ४० दिन तक अपने चेलों से मिलकर परमेश्वर के राज्य की बातें करती रही। चालीसवें दिन उनसे मिलकर आज्ञा दी कि “यरूशलम को न छोडो, परन्तु पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की बाट जोहते रहो, जिसकी चर्चा तुम मुझसे सुन चुके हो। क्योंकि यूहन्ना (सैंट जॉहन) ने तो पानी में बपतिस्मा दिया है, परन्तु थोडे दिनों के बाद तुम पवित्रात्मा से (में) बपतिस्मा पाओगे ”(Ye shall be baptized with the Holy Ghost not many days hence)। (एक्ट ऑफ एपोस्टल्स १:४-५)

यहाँ पवित्रात्मा से यीशु का मतलब सहायक से है जो उसके बाद आयेगा तथा लोगों को बपतिस्मा देगा। यहाँ शब्द “Not many days hence”का स्पष्ट अर्थ है कि “दो दिन से अधिक नहीं” क्योंकि तीन दिन होते ही many days हो जाते हैं। “Not many days hence” के अनुवाद का मतलब परमात्मा के दिनों से है, अगर उसका शब्दशः अर्थ लगाया जाता है तो यीशु की भविष्यवाणी भौतिक बन जाती है जो नहीं हो सकती। यीशु, ईश्वर का पुत्र झूठ कभी नहीं बोल सकता। इसलिये यीशु ने स्पष्ट भविष्यवाणी की है कि “आकाश ओर पृथ्वी टल जायेंगे, मेरी बातें कभी न टलेंगी” (इंजील, सैंट मैथ्यू २४:३५)

जब यीशु कहते हैं कि “Not many days hence” यह भविष्यवाणी यीशु ने नश्वर शरीर को त्यागने के बाद आत्मभाव से की है (अतः इसका अर्थ ईश्वर के समय के अनुसार ही लगाया जा सकता है) जिसका वर्णन सेन्ट पीटर द्वितीय में किया गया है” हे प्रियो यह बात तुमसे न छिपी रहे कि प्रभु के यहाँ एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर हैं”।(३:८)

इस प्रकार यीशु की उपर्युक्त भविष्यवाणी के अनुसार मृत्यु लोक के प्रथम एक हजार वर्ष पूर्ण होने पर ईश्वर का एक दिन पूर्ण होता है, जब मृत्यु लोक के दो हजार वर्ष पूर्ण हो जायंगे तो ईश्वर के दो दिन पूर्ण होकर तीसरा दिन प्रारम्भ हो जायेगा। अतः २०वीं सदी के अन्त से पहले प्रकट होकर अगर वह सहायक यदि आध्यात्मिक शक्तिपात दीक्षा नहीं देता, तो यीशू की आत्मभाव से की गई भविष्यवाणी “Ye shall be baptized with the Holy Ghost not many days hence” असत्य प्रमाणित होती, लेकिन गुरुदेव सियाग ने २०वीं सदी के उत्तरार्ध में ही शक्तिपात दीक्षा देना प्रारम्भ कर दिया है, जो यीशु की भविष्यवाणी के अनुसार है।