Divine Transformation of Human Being

मानवता का दिव्य रूपांतरण

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बाइबल कहती है कि मानवता का दिव्य रूपान्तरण मसीहा करायेगा। दानिय्येल (१२:३ व ४)

“और वे जो बुद्धिमान हैं आकाश की सफेदी की तरह चमकेंगे और वे जो बहुतों को धर्म परायण बनायेंगे हमेशा हमेशा तारों की तरह”।

“लेकिन तुम, ओ दानियल, बोलना बन्द करो, और किताबों को सील कर दो यहाँ तक कि अन्तिम समय आने तक, बहुत से इधर उधर दौडेंगे, और योग्यता बढाई जायेगी”। (१२:४)

“लेकिन न्याय (सच्चाई)का रास्ता चमकते प्रकाश की तरह है जो अधिक और अधिक पूर्णकाल तक चमकता है”। (कहावतें ४:१८)

“जैसे पिता के राज्य में सूरज चमकता है उसी तरह धार्मिक (सच्चे) चमकेंगे जो सुनने के लिये कान रखते हों, वे सुन लें”। (मैथ्यू १३:४३)

“लेकिन हम सब, ईश्वर की कीर्ति, जैसे शीशे में खुला चेहरा निहारते हैं, ईश्वर की आत्मा द्वारा कीर्ति से कीर्ति उसी शक्ल में परिवर्तित हो जाते हैं”। (२ कुरिन्थियों ३:१८)

हिन्दू धर्म के अनुसार १० वाँ अवतार या दैवीय अवतार चार युगों, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के चक्र को समाप्त करने वाला अन्तिम होगा। यह १० वाँ अवतार ही है जो संपूर्ण मानवता को सही अर्थ में विकास के शिरोबिन्दु तक पहुँचने में मदद करेगा।

वैदिक दर्शन के अनुसार मानव शरीर सात मूल कोषों से बना है, अन्न, मन, प्राण और विज्ञान, आनन्द, चित् व सत्। मानव विकास प्रथम चार कोषों से गुजरता हुआ मानव की वर्तमान प्रगति तक पहुँच चुका है, फिर भी मानव अन्तिम तीन कोषों आनन्द, चित् और सत् (हिन्दू शब्दावली में सत्, चित् और आनन्द से जाना जाता है) के द्वारा बिना ईश्वरीय शक्ति के सहारे के प्रगति नहीं कर सकता। ऐसा इसलिये है कि यह तीनों कोष भौतिक जगत के राज्य से बाहर आत्मा की दुनियाँ में हैं। हिन्दू धर्म- ग्रन्थों की भविष्यवाणियाँ कहती हैं कि केवल १०वाँ अवतार ही मानवता की चेतना को अन्तिम तीन कोषों को पार कर स्वयं ही ईश्वर बन जाने में सहायता करेगा।

इस अवतार (१० वाँ) या दिव्य अवतार के अवतरण बाबत यीशु ने भी भविष्यवाणी की है “क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ, वे मुझे अबसे नहीं देख सकेंगे, जब तक कि वह यह नहीं कहेंगे, जो ईश्वर के नाम पर आ रहा है वह उसका (ईश्वर का) आशीर्वाद पा चुका है”। (मैथ्यू २३:३९)

महान भारतीय योगी तथा आधुनिक सन्त श्री अरविन्द अपने इस दृढ विश्वास के प्रति आश्वस्त थे कि भविष्यवक्ता तथा साधु एवं अन्य धार्मिक योगी विश्व में स्थायी शान्ति तक स्थिरता लाने में अब तक असफल सिद्ध हुए हैं। फिर भी वह समान रूप से सहमत थे कि हिन्दू धर्म ग्रन्थों में १० वें अवतार ने वायदा किया था कि वह अकेला पृथ्वी पर स्थायी शान्ति स्थापित करने तथा इस विश्व को पूर्ण विनाश से बचाने में सक्षम साबित होगा। इसीलिये उन्होंने लगभग ४० वर्ष तक इस भविष्यवाणी को सही साबित करने की परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए अपने अद्वितीय प्रकार के आन्तरिक योग का अभ्यास किया । उनकी कठिन आराधना एक दिव्य आशीर्वाद लाई। उन्होंनें कहा “मैने ईश्वर से मानवता के लिये बडा वरदान प्राप्त किया है जो पृथ्वी कभी माँग सकती थी”। श्री अरविन्द के लिये यह वरदान स्वीकारते हुए भगवान श्री कृष्ण ने कहा “शीघ्र ही चेतना की ऊपरी दुनियाँ से एक रहस्यमयी शक्ति अवतरित होगी जो मृत्यु और झूठ के बुरे साम्राज्य को हरायेगी और अपने परमेश्वर के राज्य को स्थापित करेगी”।

श्री अरविन्द भाग्यशाली थे जिन्होंने इस दैवीय शक्ति को पृथ्वी पर एक विजन (दृश्य) के द्वारा नजदीक से अवतरित होते हुए देखा। उन्होंने बाद में घोषणा की कि मानव के रूप में २४ नवम्बर १९२६ को इस पृथ्वी पर वह दिव्य शक्ति जन्म ले चुकी है। उन्होंने इसे कृष्ण का भौतिक जगत में मानवता के दिव्य रूपान्तरण हेतु अवतरण कहा। उन्होंने भविष्यवाणी की कि यह दिव्य शक्ति, लगभग एक गुमनाम जीवन व्यतीत करते हुए २०वीं सदी के अन्त तक अपने मिशन के साथ प्रकट हो जायेगी (अरविन्द अपने विषय में, २९.१०.१९३५)

गुरू सियाग का जन्म २४ नवम्बर १९२६ को हुआ।

भगवान श्री कृष्ण के वरदान की प्रतिध्वनि-

“अन्तिम शत्रु जो नष्ट किया जायेगा मृत्यु है”। (१ कुरिन्थियों १५:२६)

“जिसके कान हों, वह सुन लें चर्चों से आत्मा ने क्या कहा, वह जो विजय प्राप्त करता है उसे दूसरी मृत्यु का दुःख नहीं दिया जायेगा”। (रिवीलेशन २:११)

इस प्रकार बाइबल दैवीय शक्ति के एक मानव में रहस्यमयी शक्ति के साथ मूर्तिमान होकर अवतरित होने की बात कहती है।

महर्षि अरविन्द का योगदान

श्री अरविन्द तथा माँ, जो परमार्थवाद सम्बन्धी उत्साह से ओतप्रोत थे, दोनों ने मानवता को सन्निकट विनाश से बचाने हेतु अपने आपको अत्यन्त दुष्कर योग की साधना में अनेक वर्षों तक समर्पित कर दिया, जिससे उस शक्ति के अवतरित होने के लिये उपयुक्त आध्यात्मिक वातावरण तैयार हो सके। उनका समर्पण फलीभूत हुआ। २४ नवम्बर १९२६ को श्री अरविन्द के कुछ शिष्यों के सामने माँ ने घोषणा की कि कृष्ण की अधिमानसिक शक्ति मानव रूप में पृथ्वी पर अवतरित हो चुकी है। यह वही दिन था जब गुरू सियाग ने जन्म लिया।

श्री अरविन्द तथा माँ दोनों सहमत थे कि जो व्यक्ति भौतिक जगत में कृष्ण चेतना को प्रदर्शित करने के लिये चुना गया है स्वयं अन्तिम तीन अवस्थाओं आनन्द, चित् और सत् से गुजरेगा। जिन आध्यात्मिक विकास की अवस्थाओं से वह गुजर चुका होगा उसे दूसरों में लाना उसका मिशन होगा। श्री अरविन्द और माँ यह भी मानते थे कि पृथ्वी पर यदि एक भी व्यक्ति में पूर्ण आध्यात्मिक क्रान्ति हो गई तो यह दिव्य रूपान्तरण प्रायोगिक रूप से अन्य लाखों लोगों में भी सम्भव हो सकेगा, यदि वह उसी मार्ग को अपनाते हैं जिसे उस एक चुने हुए व्यक्ति ने अपनाया है। दोनों ही इस बात से भी वाकफ थे कि चुने हुए के उस विकास को उन सभी परीक्षणों एवं संकटों से गुजरना होगा जो प्रत्येक मानव जीवन का एक हिस्सा हैं। वे जानते थे कि अन्ततः चुने हुए को पृथ्वी पर उसके वास्तविक मिशन के बारे में पूरी तरह से सचेत कर दिया जायेगा।

यद्यपि गुरू सियाग अब अपने वैश्विक मिशन के लिये तैयार हैं, वह हर कदम पर अनभिज्ञता, उदासीनता, यहाँ तक कि शत्रुता का सामना करते हैं जैसे मोजैज तथा जीसस जैसे पैगम्बरों ने किया था। लेकिन गुरू सियाग अविचलित हैं। उन्हें पूरी तरह से पता है कि कृष्ण की दिव्य चेतना, जो उनके अन्दर कार्य कर रही है, असफल नहीं हो सकती। पश्चिम विश्व की भौतिक प्रगति का अगुआ है। इसलिए गुरू सियाग अपने सिद्ध योग को पश्चिम में ले जाने के लिये उत्सुक हैं जिससे लौकिक चेतना पर आधारित आध्यात्मिक आन्दोलन आरम्भ हो । वह विश्वास करते हैं कि केवल एक ऐसा आन्दोलन ही पूरब की आध्यात्मिकता और पश्चिम की भौतिकता को अन्ततः एक करेगा जो मानवता में सच्ची धार्मिक क्रान्ति का परिचायक होगा।